बिल्क़ीस के बलात्कारियों की रिहाई को ‘इंसाफ़ का मज़ाक़’ बताने वाले USCIRF के बयान का IAMC ने किया स्वागत
प्रकाशनार्थ / FOR IMMEDIATE RELEASE
वाशिंगटन डीसी (22 अगस्त, 2022)
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) द्वारा 2002 दंगों के दौरान बिल्क़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और तीन साल की बेटी समते उनके परिजनों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की रिहाई को ‘अनुचित’ और ‘इंसाफ़ का मज़ाक़’ बताये जाने को अमेरिका के सबसे बड़े एडवोकेसी संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने स्वागत किया है.
आईएएमसी के अध्यक्ष सैयद अली ने कहा है कि आयोग की सख़्त टिप्पणी को देखते हुए अमेरिकी विदेश विभाग को भारत सरकार पर दोषियों को वापस जेल भिजवाने के लिए दबाव डालना चाहिए.
यूएससीआईआरएफ़ (USCIRF) के उपाध्यक्ष अब्राहम कूपर ने एक बयान जारी करके कहा है कि ‘2002 के गुजरात दंगों के दौरान एक गर्भवती महिला के बलात्कार और मुस्लिमों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे 11 लोगों की जल्द और अनुचित रिहाई की यूएससीआईआरएफ कड़ी निंदा करता है.’ आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा कि रिहाई ‘इंसाफ का मज़ाक़’ है, और ‘सजा से बचने के उस पैटर्न’ का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी फ़ायदा उठाते हैं.
सैयद अली ने कहा कि बिल्क़ीस के बलात्कारियों और हत्यारों की रिहाई दरअसल भारत में अल्पसंख्यकों की हालत का बयान है. क़ानून की व्याख़्या इस तरह की जा रही है कि मुस्लिमों के लिए न्याय पाना असंभव होता जा रहा है. बिल्किस के दोषियों को रिहा करने की सिफ़ारिश करने वाली कमेटी में बीजेपी और संघ के लोग भरे थे और जिस तरह रिहाई के बाद बलात्कारियों का फूल-माला और मिठाइयों से स्वागत हुआ है, वह बेहद शर्मनाक और उनके इरादों की शिनाख़्त है. इस अन्याय पर कोई भी सभ्य देश या संगठन चुप नहीं रह सकता.
उन्होंने कहा रिहाई की सिफ़ारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य सी. के. राउलजी ने, जो बीजेपी के विधायक हैं, सामूहिक बलात्कार के दोषियों को जिस तरह ‘संस्कारी ब्राह्मण’ बताते हुए सज़ा माफ़ी को सही ठहराया है वह बताता है कि आरएसएस और बीजेपी के लोग समाज को संविधान नहीं मनुस्मृति के आधार पर चलाना चाहते हैं जो ब्राह्मणों को भीषण से भीषण अपराध करने पर भी सज़ा न देने का निर्देश देती है.
सैयद अली ने कहा यूएससीआआरएफ़ का यह कहना सही है कि बिल्क़ीस के दोषियों की रिहाई एक ‘पैटर्न’ का हिस्सा है जिसके तहत मुस्लिमों पर ज़ुल्म करने वालों को कोई सज़ा नहीं मिलती है. हालत ये है कि अब अपने ऊपर होने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ मुस्लिम बोलने की स्थिति में भी नहीं हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उन पर तमाम मुक़दमे लाद दिये जाते हैं. ये हताशा की इंतेहा है कि ज़ुल्म सहने को कोई क़ौम अपनी क़िस्मत मान ले.
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के आठ साल के शासन ने आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों को अल्पसंख्यकों पर खुलकर हमला करने का मौक़ा दिया है. उन्हें पता है कि इसकी कोई सज़ा उन्हें नहीं मिलेगी, उल्टा चुनाव में ध्रुवीकरण कराने में मदद मिलेगी. अली ने राजस्थान में बीजेपी के पूर्व विधायक ज्ञान देव आहूजा के वायरल वीडियो को इसी का एक प्रमाण बताया.
इस वीडियो में आहूजा पाँच मुस्लिमों की लिंचिंग कराने की बात कबूल कर रहे हैं. सैयद अली ने कहा कि विधायक जैसे पद पर रह चुके इस बीजेपी नेता का बयान बताता है कि मुस्लिमों की लिंचिंग आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों की नीति का हिस्सा है. बीजेपी ने घृणा की राजनीति की मिसाल क़ायम की है.
सैयद अली ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों को बिल्क़ीस के दोषियों की रिहाई के फ़ैसले संज्ञान लेते हुए भारत सरकार पर दबाव डालना चाहिए. अमेरिका की सरकार भी इस मुद्दे पर भारत सरकार से बात करे ताकि पता चल सके कि अमेरिका में बसे भारतीय मुस्लिमों की चिंताओं की उसे फ़िक़्र है.