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भारत में बीबीसी पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुँची हिंदू सेना - IAMC
BBC documentary

हिंदू सेना ने भारत विरोधी एजेंडा चलाने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से बीबीसी पर बैन की माँग की

गुजरात नरसंहार पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्र पर बैन को दुनिया लोकतंत्र पर हमला बता रही है। दुनिया भर के पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने इसकी निंदा की है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के समर्थक और हिंदुत्ववादी दल अब बीबीसी पर ही बैन लगाने की माँग कर रहे हैं। हिंदू सेना नाम के एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके भारत में बीबीसी के संचालन पर रोक लगाने की माँग की है।

2002 के मुस्लिम नरसंहार में मोदी का हाथ उजागर करने वाली बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन आजकल बड़ा मुद्दा है। सरकार ने इसे भारत में पूरी तरह बैन कर दिया है। यहाँ तक कि ट्विटर और ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों से भी इसे हटवा दिया गया है लेकिन विरोध में कई विश्वविद्यालयों में छात्रों के बीच इसकी स्क्रीनिंग भी हो रही है। कई जगह विपक्षी नेता भी इसे दिखा रहे हैं और बैन को लोकतंत्र का गला घोंटना बता रहे हैं।

इस बीच हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता और वीरेंद्र कुमार सिंह ने बीबीसी के संचालन पर भारत में पूरी तरह बैन लगाने की माँग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

लाइव लॉ के मुताबिक याचिका में कहा गया है कि बीबीसी भारत में अपना एजेंडा चला रहा है। बीबीसी द्वारा भारत की एकता और अख़ंडता को बाधित किया जा रहा है। याचिका मे कहा गया हैप्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में साल 2014 के बाद से भारतीय समग्र विकास में तेजी आई है। भारत विरोधी लॉबी, मीडिया खासकर बीबीसी को नरेंद्र मोदी हजम नहीं हो रहे हैं। बीबीसी भारत और भारत सरकार के खिलाफ पक्षपाती रहा है।

याचिकाकर्ताओं ने 27.01.2023 को गृह मंत्रालय को एक अभ्यावेदन प्रस्तुत किया था जिसमें बीबीसी पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया गया था।

मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने अल्पसंख्यक विरोधी बीजेपी नेता को जज बनाने का फ़ैसला रद्द करने की माँग की

बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव रहीं वकील एल.सी विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट का जज बनाए जाने के फ़ैसले का विरोध शुरू हो गया है। उनके अल्पसंख्यक विरोधी बयानों और राजनीतिक प्रतिबद्धता को देखते हुए मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र लिखकर फ़ैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट का जज बनने की सिफ़ारिश की थी जिसे सरकार ने मंज़ूरी दे दी है।

मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों की ओर से लिखे गये पत्र मे कहा गया है कि इस तरह की नियुक्तियाँ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमज़ोर करेंगी। पत्र मे कहा गया है कि इस समय जब न्यायपालिका को कार्यपालिका की ओर से अभूतपूर्व और अनुचित आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, यह ज़रूरी है कि न्यायपालिका अपने किसी प्रशासनिक फ़ैसले से ख़ुद को कमज़ोर न करे।

पत्र के साथ वकील विक्टोरिया गौरी के यूट्यूब पर मौजूद दो इंटरव्यू और आरएसएसस के प्रकाशन में छपा एक लेख भी भेजा गया है जिसमे वे मुस्लिमों और ईसाईयों के ख़िलाफ़ लिख-बोल रही हैं। वकीलों ने अपने पत्र मे कहा है कि इस तरह की अल्पसंख्यक विरोधी वकील को जज बनाने से लोगों में न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भरोसा नहीं रहे जाएगा।

वैसे विक्टोरिया गौरी के बीजेपी नेता होने के कई प्रमाण उपलब्ध हैं। कथित तौर पर गौरी से ताल्लुक रखने वाले ट्विटर हैंडल पर वह पार्टी की सदस्य होने का दावा करती हैं। 31 अगस्त 2019 को हैंडल से किए गए एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘मैं अभी-अभी भाजपा में शामिल हुई हूं, आप भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं और नए भारत के निर्माण सहायता के लिए हाथ मिला सकते हैं।’

लेकिन, 2017 के उनके कई वीडियो हैं जो बीजेपी टीवी पर अपलोड किए गए हैं। जहां उन्हें भाजपा महासचिव के तौर पर पेश किया गया है और वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उनके कार्यों के लिए प्रशंसा करती हैं।

महाराष्ट्र में ईसाईयों पर हमला करने वालों की 15 दिन बाद भी गिरफ़्तारी नहीं, एनजीओ ने माँगी पुलिस सुरक्षा

महाराष्ट्र के एक कैथोलिक पादरी ने अपने गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग की है।16 जनवरी को उनके समूह पर ट्रेन में हमला हुआ था जिसकी एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई। इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को भी ईमेल के ज़रिये भेजी गयी है, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई।

सबरंग में छपी ख़बर के मुताबिक 16 जनवरी को शिरपुर विश्वमंडल सेवाश्रम नाम से काम करने वाले एनजीओ का यह समूह गोवा एक्सप्रेस से शिक्षा टूर पर बेलगावी जा रहा था। सांगली स्टेशन पर लगभग 15 हिंदुत्ववादी युवकों की भीड़ ने धुले जिले में कार्यरत इस एनजीओ के सात शिक्षकों पर हमला किया। हमला करने वाले बार-बार इस एनजीओ के निदेशक फादर कॉन्स्टेंसियो से पूछ रहे थे कि क्या वे लोग धर्मांतरण कराने जा रहे हैं? एनजीओ के शिक्षकों की टीम के सुपरवाइज़र गुनीलाल पवार ने बताया उन्हें स्टील की किसी चीज़ से इतना मारा गया का खून बहने लगा।

फादर रोड्रिग्स ने बताया कि उनके समूह के सभी लोग कोच नंबर S6 में थे। हमलावरों को टीम के सदस्यों की सटीक बर्थ संख्या पता थी, इसलिए यह एक सुनियोजित हमला था भीड़ स्पष्ट रूप से उन्हें निशाना बनाना चाहती थी।

पीड़ितों द्वारा 21 जनवरी को एक शिकायत पुलिस अधीक्षक, बेलगावी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी गयी थी। लेकिन इतने दिनों बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

भारत में ईसाई जनसंख्या कुल आबादी का 2.3 फ़ीसदी है लेकिन उन पर लगातार धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए हमले हो रहे हैं। 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बन जाने के बाद इन हमलों में कई गुना इज़ाफ़ा हुआ है।

उच्च शिक्षा में घट गई मुस्लिम विद्यार्थियों की तादाद

भारत में इन दिनों सत्ता के संरक्षण में जारी मुस्लिम विरोधी अभियान का बुरा असर नज़र आने लगा है। ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (एआईएसएचई) 2020-21 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में 2020-21 शैक्षणिक वर्ष में भारत में उच्च शिक्षा के लिए नामांकन करने वाले मुस्लिम छात्रों की संख्या में गिरावट आई है।

इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस सर्वे से पता चला है कि मुस्लिम समुदाय के छात्रों की तादाद 2020-21 में घटकर 19.21 लाख (4.6 प्रतिशत) हो गई, जो 2019-20 में 21 लाख (5.5 प्रतिशत) थी।

शिक्षा मंत्रालय द्वारा रविवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अन्य अल्पसंख्यक समुदायों जैसे कि ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी (पारसी) छात्रों का नामांकन 2 प्रतिशत (8.29 लाख नामांकन) था, जो पिछले वर्ष के आंकड़े 2.3 प्रतिशत से कम था।

हालांकि, पिछले चार शैक्षणिक वर्षों में मुस्लिम छात्रों के नामांकन की संख्या में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। 2016-17 में कुल 17.3 लाख मुस्लिम छात्रों का नामांकन हुआ था, जो 2017-18 में बढ़कर 18.3 लाख, 2018-19 में 19.5 लाख और 2019-20 में 21 लाख पर पहुंच गया। 2020-21 में इसमें कमी आ गई।

रिपोर्ट में एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि मुस्लिम अल्पसंख्यक और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों में पुरुषों की तुलना में महिला विद्यार्थियों की संख्या अधिक है। उच्च शिक्षा में मुस्लिम पुरुषों की तादाद 9.5 लाख है जबकि मुस्लिम महिलाओं की तादाद 9.6 लाख है। वहीं अन्य अल्पसंख्यक समुदाया के 3.81 लाख पुरुष विद्यार्थियों की तुलना में महिलाओं की तादाद 4.48 लाख है।