दो साल क़ैद के बाद सिद्दीक कप्पन की रिहाई - IAMC
Siddique Kappan

पत्रकार सिद्दीक कप्पन को रिहा करने का आदेश जारी

लखनऊ की एक अदालत ने 1 फ़रवरी को केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई का आदेश जारी कर दिया। सिद्दीक कप्पन को 7 अक्टूबर 2020 को एक दलित लड़की के बलात्कार और उसकी हत्या के मामले की रिपोर्टिंग करने के लिए हाथरस जाते वक्त यूपी पुलिस ने मथुरा में गिरफ्तार कर लिया था।

पत्रकार कप्पन की गिरफ्तारी को आज़ाद मीडिया का दमन बताए जाने पर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए यूपीपीए की धाराएँ लगा दी थीं और ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज कर लिया था।

9 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट से सिद्दीक कप्पन को यूएपीए मामले में ज़मानत मिल गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ज़मानत पाना हर आरोपी का अधिकार है। लेकिन ईडी की विशेष अदालत ने उस ज़मानत नहीं दी जिसकी वजह से रिहाई नहीं हो पाई थी। 23 दिसंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कप्पन को इस मामले मे भी सशर्त ज़मानत दे दी। लेकिन सरकार की ओर से आये तमाम अड़ंगों के कारण रिहाई टलती रही। आख़िरकार 1 फ़रवरी को लखनऊ के सत्र न्यायालय ने रिहाई आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए।

ख़बर है कि सिद्दीक कप्पन की रिहाई बुधवार रात या गुरुवार की सुबह तक हो जाएगी। इन दो से ज़्यादा सालों मे सिद्दीक कप्पन भारत और दुनिया भर में पत्रकारों के ऊपर होने वाले दमन और उत्पीड़न के प्रतीक के तौर पर उभरे। यह भी साबित हुआ कि पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए भारत सुरक्षित नहीं रह गया है।

एनपीसी ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर बैन की निंदा की, कहा-बैन नहीं हटा तो भारत खो देगा सबसे बड़े लोकतंत्र की पहचान

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन स्थित पत्रकारों के शीर्ष संगठन  नेशनल प्रेस क्लब (एनपीसी)  गुजरात नरसंहार के लिए पीएम  मोदी को ज़िम्मेदार ठहराने वाली बीबीसी की डाक्यूमेंट्री पर बैन लगाने की कड़ी निंदा की है। संगठन ने इसे प्रेस की आज़ादी का दमन बताते हुए भारत सरकार से बैन तुरंत हटाने की माँग की है। 

एनपीसी अध्यक्ष एलीन ओ रेली और नेशनल प्रेस क्लब जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट अध्यक्ष गिल क्लेन की ओर से जारी बयान में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बैन को प्रेस की स्वतंत्रता का दमन कहा गया है। कहा गया है कि इससे भारत दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहचान खो देगा।  बयान मे कहा गया है कि, ‘भारत को गर्व होना चाहिए कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है पर अगर वह प्रेस की आज़ादी को खत्म करता है, पत्रकारों को प्रताड़ित करता है और अपनी कमियों का आईना दिखाने वाली खबरों को दबाना जारी रखता है तो वह इस पहचान को क़ायम नहीं रख सकता।‘ 

नेशनल प्रेस क्लब के बयान में कहा गया है कि “जब से  नरेंद्र मोदी सत्ता में आए हैं, उनकी सरकार ने स्वतंत्र समाचार मीडिया के अपने नागरिकों के अधिकार को बार-बार दबाया है।”

नेशनल प्रेस क्लब ने भारत सरकार से डाक्यूमेंट्री पर लगा बैन तुरंत हटाने की माँग की है। साथ यह माँग भी की है कि सरकार अपने नागरिकों को यह फ़ैसला करने का हक़ दे कि वे इस डॉक्यूमेंट्री के निष्कर्षों से सहमत हैं या असहमत।

नेशनल प्रेस क्लब ने कहा है कि बीबीसी दुनिया के सबसे सम्मानित समाचार स्रोतों में से एक है और अपने उच्च संपादकीय मानकों के लिए जाना जाता है। भारत सरकार पत्रकारों का उत्पीड़न और प्रेस की स्वतंत्रता का दमन बंद करे। क्लब ने यूट्यूब और ट्विटर पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ब्लॉक करने के भारत सरकार के क़दम की भी कड़ी आलोचना की है।

1908 में स्थापित, नेशनल प्रेस क्लब पेशेवर पत्रकारों का अग्रणी संगठन है। क्लब में लगभग हर प्रमुख समाचार संगठन का प्रतिनिधित्व करने वाले 3,000 सदस्य हैं और यह अमेरिका और दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उठने वाली एक प्रमुख आवाज है।

 हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर भारत में चुप्पी, पर ऑस्ट्रेलिया में जाँच

भारत के प्रधानमंत्री मोदी के ख़ास समझे जाने वाले गौतम अडानी के अडानी ग्रुप की हेराफेरी और धोखाधड़ी को लेकर आई हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट ने कंपनी को काफी नुकसान किया है लेकिन न भारतीय मीडिया में इसे लेकर चिंता है और न भारत सरकार की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया आई है।

इस बीच ख़बर है कि ऑस्ट्रेलिया का कॉरपोरेट रेग्युलेटर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की समीक्षा कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया के अखबार सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि ऑस्ट्रेलिया के कॉरपोरेट रेगुलेटर्स मामले की जांच कर रहे हैं। 

गौतम अडानी के नेतृत्व वाला अडानी समूह ऑस्ट्रेलिया में भी बिजनेस करता है और वहाँ कार्माइकल कोयला खदान और एबॉट पाइंट पोर्ट का संचालन करता है।

 अडानी समूह को ऑस्ट्रेलिया में निवेश के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय स्टेट बैंक से 6200 करोड़ के लोन का क़रार कराया था। वह भी तब जब 6 अंतराष्ट्रीय बैंको ने इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण को खतरा बताते हुए फाइनेंस करने से मना कर दिया था।  विदेशी धरती पर किसी प्रोजेक्ट के लिए अब तक का यह सबसे बड़ा लोन क़रार था। एसबीआई पर दबाव और गौतम अडानी पर मेहरबानी के लिए प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना भी हुई थी।

जोशी मठ के दलितों ने लगाया राहत के काम में भेदभाव का आरोप

बड़े पैमाने पर ज़मीन के धँसने का शिकार हुए उत्तराखंड के जोशीमठ शहर के दलितों ने राहत कार्य में भेदभाव का आरोप लगाया है। उन्होंने ये शिकायत राज्य अनुसूचित जाति आयोग से की है।

आयोग के अध्यक्ष मुकेश कुमार ने बताया, ‘गांधी कॉलोनी, जहां अधिकांश निवासी अनुसूचित जाति के हैं, के कुछ निवासियों ने राहत कार्यों के दौरान उनकी जाति के कारण उपेक्षा किए जाने की शिकायत की है। प्रशासन के अधिकारियों को इन दावों की पुष्टि करने को कहा गया है। मुझ सहित आयोग के अधिकारी इस सप्ताह जमीनी स्थिति की समीक्षा करेंगे और आरोप सही पाए जाने पर कार्रवाई करेंगे।’

लेकिन जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी कहा है कि प्रशासन को अभी तक जातिगत भेदभाव पर ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है।

उत्तराखंड में दलितों के प्रति भेदभाव की शिकायतें अक्सर मिलती रहती है। हाल ही में एससी आयोग ने 13 जिलों के प्रशासन से उन मंदिरों के बारे में सूचना माँगी थी जहाँ दलितों का प्रवेश वर्जित है। कुछ दिन पहले एक दलित युवा के मंदिर मे प्रवेश के बाद हुई पिटाई को लेकर दलितों में काफ़ी आक्रोश नज़र आया था।

ग़रीबी से जूझ रहे भारत की सरकार ने मनरेगा के बजट में कटौती कर दी

भारत में 84 करोड़ लोग भोजन के लिए सरकारी अनाज पर निर्भर हैं, ऐसा ख़ुद भारत की सरकार बताती है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 2023 के बजट में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम के लिए आवंटित राशि काफी कम करते हुए 60 हज़ार करड़ रुपये कर दी गई है जबकि संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ था।

यह नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में मनरेगा को हुआ सबसे कम आवंटन है जबकि कोविड महामारी को देखते हुए मनरेगा के तहत रोज़गार माँगने वालों की संख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ था।

यह कानून मनमोहन सिंह के कार्यकाल में लागू हुआ था जिसके तहत साल में सौ दिन रोज़गार की गारंटी ग्रामीण मज़दूरों को दी गई थी। स्वाभाविक रूप से इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों को मिला था क्योंकि ग़रीबों की तादाद इन वर्गों में ज़्यादा है। ऐसे में इस योजना मे कटौती को विपक्ष मोदी सरकार का ग़रीब विरोधी कदम बता रहा है।