सिद्दीक़ कप्पन की ज़मानत अर्ज़ी की नामंज़ूरी दुर्भाग्यपूर्ण; भारत में मुस्लिमों के लिए इंसाफ़ पाना मुश्किल होता जा रहा है: इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल - IAMC

सिद्दीक़ कप्पन की ज़मानत अर्ज़ी की नामंज़ूरी दुर्भाग्यपूर्ण; भारत में मुस्लिमों के लिए इंसाफ़ पाना मुश्किल होता जा रहा है: इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल

FOR IMMEDIATE RELEASE

वाशिंगटन डीसी (6 अगस्त 2022) – अमेरिका स्थित एडवोकेसी संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) ने कहा है कि जेल में बंद पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की ज़मानत अर्ज़ी को नामंज़ूर करने का इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला दुर्भाग्यपूर्ण है और ये दिखाता है कि भारतीय अदालतों में अल्पसंख्यकों को इंसाफ़ मिलना मुश्किल होता जा रहा है.

सिद्दीक़ कप्पन और उनके साथियों को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अक्टूबर 2020 में हाथरस जाते हुए गिरफ़्तार कर लिया था. वे हाथरस में एक दलित लड़की के बलात्कार और बर्बर हत्या की रिपोर्टिंग करने जा रहे थे.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कप्पन पर हिंसा भड़काने और क़ानून-व्यवस्था की हालत ख़राब करने की साज़िश का आरोप लगाया है. कप्पन पर अवैध गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के साथ-साथ देशद्रोह और समुदायों के बीच झगड़ा कराने जैसी अन्य धाराएँ भी लगाई गई हैं.

शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति में आईएएमसी के अध्यक्ष सय्यद अली ने कहा, “ऐसा लगता है अदालतों को नागरिक अधिकारों की परवाह नहीं रह गयी है और वे भारतीय जनता पार्टी की सरकारों के हिंदुत्ववाद को क़ानूनी जामा पहनाने में जुटी हैं.”

गिरफ़्तारी से पहले सिद्दीक़ कप्पन दिल्ली में मलयालम न्यूज़ पोर्टल अज़ीमुख़म के रिपोर्टर की हैसियत से काम कर रहे थे. वो केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ) की दिल्ली शाखा के सेक्रेटरी भी हैं.

दुनिया भर के पत्रकार संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने कप्पन की गिरफ़्तारी को ग़लत बताया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि “कप्पन पर लगाये गये आरोप आधारहीन हैं. सरकार को चाहिए कि पत्रकारों को निशाना बनाना बंद करे.” कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) ने कप्पन का हवाला देते हुए यूरोपीय संघ से आग्रह किया है कि वो प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए भारत को जवाबदेह ठहराए.

लेकिन कप्पन के ख़िलाफ़ क़ानूनी जकड़न लगातार तेज़ होती गई है. पिछले साल मथुरा की एक अदालत ने उनकी ज़मानत याचिका रद्द कर दी थी. इसके बाद कप्पन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज़मानत की अर्ज़ी दी थी. 4 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज कृष्णा पहल ने सिद्दीक़ कप्पन की ज़मानत याचिका नामंज़ूर करते हुए कहा कि जब कप्पन को “हाथरस में कोई काम नहीं था” तो उनका वहाँ आना संदेहास्पद है. जज पहल ने पुलिस की चार्जशीट का हवाला देते हुए कहा कि कप्पन पर ग़ैर-क़ानूनी तरह से पैसे उगाही करने का और हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप है.

“यह अफ़सोस की बात है कि हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस की गढ़ी गई कहानी पर यक़ीन कर लिया,” आईएमसी के सय्यद अली ने कहा. “ कप्पन के साथ हो रहा सुलूक मोदी राज में अल्पसंख्यकों की हालत का बयान है.”

सय्यद अली ने कहा भारतीय पत्रकार देश में ही नहीं, विदेश में जाकर भी रिपोर्टिंग करते रहते हैं. पत्रकार के नाते कप्पन को पूरा हक़ है कि वो हाथऱस जैसे बर्बर कांड की हक़ीक़त को परखें और असलियत बताएँ. उन्होंने कहा “भारतीय संविधान हर नागरिक को बग़ैर रोक-टोक के देश भर में जाने की आज़ादी देता है.”

आईएमसी ने कहा कप्पन को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत आतंकवादी साबित करने की कोशिश हो रही है और अदालत “संभावना” और “आशंका” के आधार पर उन्हें सच मान रही है जबकि अभी ट्रायल भी पूरा नहीं हुआ.

आईएएमसी ने कहा कि जेल में भी कप्पन के साथ बुरा सुलूक किया जा रहा है. केरल यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट ने भी कप्पन के साथ जेल में हो रहे अमानवीय व्यवहार पर सवाल उठाया है. पिछले साल कप्पन को कोविड हुआ था तो उन्हें इलाज मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाना पड़ा था, जबकि एक क़ैदी के रूप में इलाज हासिल करना उनका कानूनी हक़ था.

आईएएमसी ने कहा कई देशों के दबाव के बाद पैगंबर मोहम्मद साहब के ख़िलाफ़ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने वाली बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर तो दर्ज हुआ लेकिन उसे कभी गिरफ़्तार नहीं किया गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने उसकी गिरफ़्तारी पर रोक भी लगा दी है. उधर, फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट ‘आल्ट न्यूज़’ के सहसंस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को सेंसर एक हिंदी फ़िल्म का टुकड़ा ट्वीट करने के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया था और कई दिनों तक जेल में रहने के बाद ज़मानत मिल सकी थी. संगठन ने कहा कि ज्यूडिशरी के इस दोहरे रवैये पर पूरी दुनिया की नज़र है.

आईएएमसी ने कहा कि मोदी राज में भारतीय मीडिया लगातार सरकारी दबाव में काम रहा है. इसी का नतीजा है कि ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा इस साल जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 150वें स्थान पर आ गया है. पिछले साल भारत 142वें स्थान पर था. भारत कभी लोकतंत्र और आज़ाद मीडिया को लेकर गर्व करता था, लेकिन बीजेपी की सरकार आने के बाद स्थिति उलट गयी है. सिद्दीक कप्पन का पहला गुनाह ये है कि वे बतौर पत्रकार यूपी की योगी सरकार के ज़ुल्म की कहानी सामने लाना चाहते हैं और दूसरा ये कि वे मुसलमान हैं. बीजेपी की नज़र में ये दोहरा अपराध है जिसकी सज़ा उन्हें मिल रही है.

सय्यद अली ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर नज़र रखने वाले यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (यूएससीआईआरएफ) ने लगातार तीसरे साल अमेरिकी विदेश विभाग को भारत को ‘विशेष चिंता वाले देश’ की सूची में रखने की सिफारिश की है. इस सूची में अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, बर्मा, चीन, रूस, ईरान, सऊदी अरब, सीरिया और उत्तर कोरिया समेत 15 देश हैं. यह भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता के संकल्प के बारे में दुखद टिप्पणी है.

यूएससीआईआरएफ़ ने कप्पन को भारत में हो रहे मानवाधिकार और धार्मिक अधिकारों के हनन का पीड़ित भी बताया है.

आईएएमसी ने कहा है सिद्दीक़ कप्पन के मामले को वह मानवाधिकार और नागिरक अधिकारों से जुड़े तमाम वैश्विक मंचों पर उठायेगा.

Read this in English here: https://iamc.com/indian-americans-condemn-denial-of-bail-to-prisoner-of-conscience-muslim-journalist-siddique-kappan/